भारत में बिना शर्त नकद हस्तांतरण एक दशक में 23 गुना बढ़कर पहुंचा 2.8 लाख करोड़ रुपए के पार: प्रोजेक्ट डीप की रिपोर्ट

अपनी तरह की यह पहली राष्ट्रीय रिपोर्ट भारत में यूसीटी (अनकंडिशनल कैश ट्रांसफर) के उदय को दर्शाती है और नागरिक-केंद्रित, गरिमापूर्ण कल्याण के लिए एक रोडमैप प्रस्तुत करती है भारत...

prateeksha thakur | Published: August 11, 2025 13:04 IST, Updated: August 11, 2025 13:04 IST
भारत में बिना शर्त नकद हस्तांतरण एक दशक में 23 गुना बढ़कर पहुंचा 2.8 लाख करोड़ रुपए के पार: प्रोजेक्ट डीप की रिपोर्ट

भारत में बिना शर्त नकद हस्तांतरण एक दशक में 23 गुना बढ़कर पहुंचा 2.8 लाख करोड़ रुपए के पार: प्रोजेक्ट डीप की रिपोर्ट

अपनी तरह की यह पहली राष्ट्रीय रिपोर्ट भारत में यूसीटी (अनकंडिशनल कैश ट्रांसफर) के उदय को दर्शाती है और नागरिक-केंद्रित, गरिमापूर्ण कल्याण के लिए एक रोडमैप प्रस्तुत करती है

भारत में बिना शर्त नकद हस्तांतरण (अनकंडिशनल कैश ट्रांसफर) यानी यूसीटी (UCTs) में पिछले एक दशक में 23 गुना बढ़ोत्तरी देखी गई है। इस दौरान साल 2024-25 में यह आवंटन अभूतपूर्व रूप से बढ़कर 2,80,780 करोड़ रुपए तक पहुँचा है। यह भारत के सकल घरेलू उत्पाद का 0.9 फीसदी और सामाजिक क्षेत्र में होने वाले कुल खर्च का 11 फीसदी है—जो सरकार के बजटीय खर्च में मनरेगा और खाद्य सुरक्षा जैसे प्रमुख कार्यक्रमों से भी आगे है। ये नतीजे प्रोजेक्ट डीप की एक नई राष्ट्रव्यापी रिपोर्ट का हिस्सा हैं, जिसका शीर्षक है ‘भारत में बिना शर्त नकद हस्तांतरण: अब तक की यात्रा और भविष्य की रुपरेखा’। यह रिपोर्ट भारत के सामाजिक कल्याण परिदृश्य में परिवर्तनकारी बदलाव की जाँच करती है और नकद-आधारित कल्याण को अधिक समावेशी, प्रभावशाली और भविष्योन्मुख बनाने के लिए दूरदर्शी एजेंडे की रूपरेखा प्रस्तुत करती है।

मौजूदा समय के रणनीतिक महत्व पर प्रकाश डालते हुए, प्रोजेक्ट डीप के सह-संस्थापक, मुज़मिल बेग़ ने कहा, “यह योजनाओं के समेकन और अप्रभावी योजनाओं को समाप्त करने का एक वास्तविक अवसर प्रस्तुत करता है, ताकि उन सरकारी योजनाओं को हटाया जा सके जो अपने इच्छित उद्देश्यों या समेकित विकास के लक्ष्य को पूरा नहीं कर रही हैं; सतत नकद हस्तांतरण के माध्यम से न्यायसंगत कल्याण के एक नए युग की शुरुआत की जा सकती है। एक ऐसा युग जो सरकार को अपने प्रयासों को युक्तिसंगत बनाने, कम संसाधनों में अधिक काम करने, नागरिकों के लिए लचीलेपन को बढ़ावा देने और देश के समावेशी विकास के लक्ष्य को पूरा करने में मददगार साबित हो।”

सत्तर से अधिक केंद्रीय और राज्य-स्तरीय योजनाओं के मूल्यांकन और 21 विशेषज्ञों से साक्षात्कार के ज़रिए मिली अंतर्दृष्टि के आधार पर, यह रिपोर्ट यूसीटी के डिज़ाइन, वित्तपोषण और कार्यान्वयन का गहन विश्लेषण प्रस्तुत करती है। इसमें पाया गया है कि मासिक नकद हस्तांतरण एक प्रमुख मॉडल बनकर उभरा है, जो साल 2015-16 में केवल नौ योजनाओं पर लागू था और साल 2024-25 में यह 32 योजनाओं तक पहुंच गया है। मासिक नकद हस्तांतरण अब यूसीटी खर्च का 71 फीसदी हिस्सा है। वर्तमान बजटीय आवंटनों का 54 फीसदी से ज़्यादा हिस्सा निम्न-आय वाले परिवारों की महिलाओं के लिए निर्देशित है, जो बजटीय वितरण में लिंग-संवेदनशीलता संबंधी बदलाव को दर्शाता है। यूसीटी का उपयोग और उसे लागू किया जाना अब कार्यकुशलता या संकट के दौर में प्रतिक्रिया के टूल के रूप में सीमित नहीं है, बल्कि वित्तीय स्थिरता और नागरिकों की एजेंसी यानी स्वाधिकार के उपकरण के रूप में इसका इस्तेमाल किया जा रहा है।

इस बदलाव के इर्द-गिर्द सोची-समझी रणनीतियां और प्रणालियां तय किए जाने की ज़रूरत पर ज़ोर देते हुए, प्रोजेक्ट डीप की सह-संस्थापक पंखुरी शाह ने कहा, “यह साफ़ है कि नकद हस्तांतरण वित्तीय सहायता से आगे बढ़ चुका है – अधिक से अधिक स्तर पर इसे अपनाया जाना भारत में वेलफेयर यानी कल्याण संबंधी दृष्टिकोण में एक संरचनात्मक बदलाव का प्रतिनिधित्व करता है। एक टूल के रूप में, यह आर्थिक निश्चितता प्रदान करता है और कमज़ोर समूहों को और अधिक पिछड़ने से बचाते हुए उनके लिए एक सुरक्षा जाल प्रदान करता है, लेकिन इसमें और भी बहुत कुछ करने की क्षमता है। इसके लिए, ज़रूरी है कि इसके बढ़ते उपयोग के प्रति एक व्यवस्थित दृष्टिकोण अपनाया जाए; जहाँ नागरिक समाज यानी सिविल सोसाएटी इससे जुड़ी नई योजनाएं विकसित करने में नवाचार यानी इनोवेशन को बढ़ावा दे सके और मौजूदा योजनाओं के प्रभाव संबंधी मूल्यांकन को लेकर प्रमाण विकसित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकें।”

पिछले एक दशक के दौरान हम काफ़ी आगे बढ़ चुके हैं, लेकिन यह रिपोर्ट नकद हस्तांतरण की सुविधा से बाहर रह जाने वाले समूहों की ओर भी इशारा करती है, खासकर बेघर या सड़कों पर रहने वाले, या फिर ट्रांसजेंडर समुदाय, या गिग वर्कर्स और उन लोगों के बीच, जो अंतर्संबंधी (intersectional) कमज़ोरियों और डेटा की अदृश्यता का सामना करते हैं। यह रिपोर्ट व्यापक राज्य स्तरीय डेटा बेस और लाभ संबंधी पोर्टेबिलिटी की आवश्यकता पर ज़ोर देती है। यह विश्लेषण लाभ संबंधी पर्याप्तता (benefit adequacy) में मौजूद भारी अंतर को भी दर्शाता है, जहाँ वार्षिक हस्तांतरण राशि ₹2,400 से ₹2,00,000 तक है। यहां तक कि कुछ योजनाएँ मासिक प्रति व्यक्ति खपत के केवल 2.7 फीसदी को ही कवर करती हैं। उदाहरण के लिए इंदिरा गांधी राष्ट्रीय वृद्धावस्था पेंशन योजना (IGNOAPS) के तहत, वरिष्ठ नागरिकों को दी जाने वाली मासिक पेंशन, मनरेगा द्वारा प्रदान की जाने वाली दैनिक मज़दूरी से भी कम है, जिससे प्रमुख कल्याणकारी कार्यक्रमों के तहत दी जाने वाली आर्थिक सहायता की पर्याप्तता पर सवाल उठते हैं।

यह रिपोर्ट कल्याण के लिए आमतौर पर अपनाए जाने वाले ‘सुरक्षा-जाल दृष्टिकोण’ (safety-net approach) में बदलाव को प्रस्तावित करते हुए “ट्रैम्पोलिन प्रभाव” की बात करती है जो कमज़ोर समुदायों के जीवन को मौलिक रूप से बदलने की क्षमता रखता है। इसमें यूसीटी को सशक्तिकरण और आर्थिक भागीदारी के दीर्घकालिक उपकरण यानी टूल के रूप में स्थापित करना शामिल है। इस बदलाव को स्थायी रूप से अमल में लाने के लिए यह रिपोर्ट पुराने या अप्रभावी कार्यक्रमों की पहचान करने और योजनाओं के समेकन (scheme consolidation) संबंधी कोशिशों को बढ़ावा दिए जाने का आह्वान करती है। साथ ही यह मूल्यांकन का एक मज़बूत तंत्र विकसित किए जाने और नागरिक-केंद्रित वितरण प्रणालियों की पैरवी करती है ताकि पारदर्शिता, समावेशिता और प्रभाव यानी इम्पैक्ट को बढ़ाया जा सके।

महत्वपूर्ण रूप से, रिपोर्ट इस बात पर ज़ोर देती है कि यूसीटी को सड़कों, स्कूलों और अस्पतालों के निर्माण जैसे सार्वजनिक संसाधनों यानी पब्लिक गुड्स में निवेश के विकल्प के रूप में नहीं, बल्कि पूरक के रूप में देखा जाना चाहिए। जब आधारभूत सेवाएँ मज़बूत हों तभी नकद हस्तांतरण व्यक्तिगत एजेंसी को बढ़ावा देने की अपनी इच्छित भूमिका निभा सकते हैं बजाय इसके कि वह बिखरी हुई प्रणालियों को बचाय रखने के लिए बैंड-एड के रुप में काम करें।

इस गहन विश्लेषण के आधार पर, प्रोजेक्ट डीप ने भारत में नकद हस्तांतरण आधारित कल्याण को मज़बूत और भविष्य के लिए सुरक्षित बनाने को लेकर तीन-आयामी कार्य एजेंडा तैयार किया है:

  • राज्यों और क्षेत्रों में सुसंगतता और कार्यकुशलता सुनिश्चित करते हुए, नकद हस्तांतरण योजनाओं में सामंजस्य और समेकन हेतु एक नीतिगत ढाँचे के विकास की अनुशंसा की जाती है।
  • इच्छित उद्देश्यों के लिए पर्याप्त राशि सुनिश्चित करने के लिए डिज़ाइन प्रक्रियाओं में उद्देश्यपूर्णता और नवाचार यानी इनोवेशन को शामिल करना। साथ ही ‘सुरक्षा जाल’ के दृष्टिकोण से ‘ट्रैम्पोलिन प्रभाव’ की ओर रुख ताकि बुनियादी कल्याण से आगे बढ़कर आकांक्षात्मक जीवन स्तर की ओर बढ़ा जा सके।
  • डेटा-संबंधी एक सशक्त और समन्वित तंत्र का निर्माण करना साथ ही इम्पैक्ट यानी योजनाओं के प्रभाव के मूल्यांकन को सुदृढ़ बनाना, जो परस्पर भागीदारी और समुदाय के नेतृत्व वाली डिज़ाइन प्रक्रियाओं द्वारा समर्थित हो, और लाभार्थियों के अनुभवों से जुड़ा हो।
    दुनिया भर से अब इस बात के पर्याप्त प्रमाण मिल रहे हैं कि नागरिकों को सीधे पैसा देना कारगर है। इससे उन्हें अपने जीवन को आकार देने के लिए विकल्प और क्रय शक्ति मिलती है। यह सकारात्मक प्रभाव पैदा करने का एक सरल और प्रभावी उपाय है। नकद हस्तांतरण जीवन की बुनियादी गुणवत्ता बनाए रखने में मदद कर सकता है। ये आजीविका बढ़ाने के लिए निवेश संबंधी सहायता के रूप में भी काम कर सकते हैं। यह दोनों ही बदलाव के कारगर तरीक़े हैं। निस्संदेह रूप से हमारे पास एक सशक्त साधन है। इसकी पूरी क्षमता को उजागर करने के लिए सरकारों, नागरिक समाज और परोपकार (philanthropy) से जुड़े प्रयासों के बीच सहयोगात्मक कार्रवाई की ज़रूरत होगी।

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