वर्दी में वीर, याचिंग में चैंपियन: जानिए अर्जुन अवॉर्डी होमी मोतीवाला की प्रेरक गाथा

By Mansi Sharma | 17/06/2025 | Categories: देश
वर्दी में वीर, याचिंग में चैंपियन: जानिए अर्जुन अवॉर्डी होमी मोतीवाला की प्रेरक गाथा

भारतीय नौसेना के पूर्व अधिकारी और अंतरराष्ट्रीय याचिंग चैंपियन होमी मोतीवाला का सफर युवाओं के लिए एक आदर्श – खेल, देशभक्ति और कोचिंग में रचा इतिहास

17 जून 2025, नई दिल्ली

भारतीय नौसेना के पूर्व अधिकारी कमांडर होमी डैडी मोतीवाला की जीवन यात्रा राष्ट्रसेवा, खेल और कोचिंग में अनुकरणीय योगदान की प्रेरणादायक मिसाल है। 18 जून 1958 को जन्मे होमी मोतीवाला ने अपने जीवन को न सिर्फ देश की सुरक्षा में समर्पित किया, बल्कि खेल के क्षेत्र में भी भारत का गौरव अंतरराष्ट्रीय मंचों पर बढ़ाया।

अपनी प्रारंभिक शिक्षा बॉम्बे स्कॉटिश हाई स्कूल से पूरी करने के बाद उन्होंने प्रतिष्ठित नेशनल डिफेंस एकेडमी (NDA) में दाखिला लिया। वर्ष 1978 में एनडीए से स्नातक होने के बाद 1 जुलाई 1979 को वे भारतीय नौसेना में कमीशन प्राप्त कर एक अधिकारी बने। देश की जलसीमा की रक्षा के साथ-साथ वे खेलों में भी सक्रिय रहे, और जल्द ही याचिंग के क्षेत्र में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया।

कमांडर मोतीवाला ने याचिंग में भारत का प्रतिनिधित्व करते हुए 1983, 1984, 1986, 1987, 1990 और 1991 में ‘याचिंग एसोसिएशन ऑफ इंडिया’ की नेशनल टीम चैंपियनशिप अपने नाम की। उन्होंने 1990 बीजिंग एशियाई खेलों और 1994 हिरोशिमा एशियाड में साथी खिलाड़ी पीके गर्ग के साथ ‘एंटरप्राइज वर्ग’ में कांस्य पदक जीतकर भारत को गर्व का पल दिया। इसके अलावा 1993 में जिम्बाब्वे में आयोजित वर्ल्ड एंटरप्राइजेज चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीतना उनके करियर की सबसे बड़ी उपलब्धियों में से एक रहा।

उनके खेलों में अभूतपूर्व योगदान के लिए 1993 में उन्हें अर्जुन पुरस्कार से सम्मानित किया गया। अगले वर्ष, उन्हें भारत के सर्वोच्च खेल सम्मान ‘राजीव गांधी खेल रत्न पुरस्कार’ (अब ‘मेजर ध्यानचंद खेल रत्न पुरस्कार’) प्रदान किया गया। उनके अदम्य साहस और कर्तव्यनिष्ठा के लिए उन्हें उसी वर्ष ‘शौर्य चक्र’ से भी सम्मानित किया गया, जो उनकी बहुमुखी उपलब्धियों को दर्शाता है।

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खेल से संन्यास के बाद भी उनका योगदान थमा नहीं। 1999 से 2008 तक उन्होंने भारतीय नौकायन संघ (YAI) के चीफ नेशनल कोच के रूप में देश के युवा खिलाड़ियों को प्रशिक्षित किया। उनके मार्गदर्शन में भारत ने 2002 एशियन गेम्स में बेहतरीन प्रदर्शन किया, जिसके लिए उन्हें द्रोणाचार्य पुरस्कार से नवाजा गया। उनकी कोचिंग ने भारतीय याचिंग को नई दिशा दी और कई युवा खिलाड़ियों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहुंचाया।

सेना में अपने अंतिम वर्षों के दौरान वे कैप्टन के पद तक पहुंचे और 2008 में सेवानिवृत्त हुए। इसके बाद उन्होंने नौकायन से जुड़े अपने अनुभव को एक नई दिशा दी और नौकायन सामग्री की आपूर्ति से जुड़ी एक सफल कंपनी की स्थापना की। खेल, सेवा और नेतृत्व के क्षेत्र में उनके द्वारा रचा गया यह अद्वितीय इतिहास आने वाली पीढ़ियों को प्रेरणा देता रहेगा।

कमांडर होमी डैडी मोतीवाला का जीवन हमें यह सिखाता है कि समर्पण, अनुशासन और लगन से किसी भी क्षेत्र में श्रेष्ठता प्राप्त की जा सकती है। वे आज भी युवाओं के लिए एक आदर्श हैं – एक ऐसे भारतीय जिनकी कहानी सिर्फ उपलब्धियों की नहीं, बल्कि देश और खेल के प्रति निस्वार्थ प्रेम की कहानी है।

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