बिहार मतदाता सूची पर सुप्रीम कोर्ट की सख्त नजर

“भरोसे की कमी” पर जताई चिंता, कानूनी अधिकार न होने पर पूरी प्रक्रिया रद्द करने की चेतावनी

नई दिल्ली, 13 अगस्त 2025

सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कहा कि बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) को लेकर चुनाव आयोग (ECI) पर “भरोसे की कमी” दिखाई दे रही है। अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि आधार कार्ड को नागरिकता का अंतिम प्रमाण नहीं माना जा सकता। जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की पीठ ने कहा कि सबसे पहले यह तय करना होगा कि चुनाव आयोग को यह प्रक्रिया चलाने का कानूनी अधिकार है या नहीं। “अगर उनके पास यह शक्ति नहीं है, तो सब खत्म… लेकिन अगर है, तो फिर प्रक्रिया में दिक्कत नहीं होनी चाहिए,” पीठ ने कहा, साथ ही चेतावनी दी कि अगर गंभीर अवैधता पाई गई तो पूरी प्रक्रिया रद्द कर दी जाएगी।

अदालत ECI के 24 जून के आदेश को चुनौती देने वाली कई याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें बिहार विधानसभा चुनाव से पहले SIR कराने का निर्देश दिया गया था। याचिकाकर्ताओं — जिनमें एनजीओ, राजनीतिक नेता और कार्यकर्ता शामिल हैं — का कहना है कि यह प्रक्रिया लाखों वैध मतदाताओं को मताधिकार से वंचित कर सकती है। आरजेडी सांसद मनोज झा की ओर से पेश वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने आरोप लगाया कि नियमित वोट डालने वाले मतदाता भी सूची से गायब हैं, कुछ जीवित लोगों को मृत दिखाया गया है, और जिनका पता नहीं बदला उन्हें भी दोबारा फॉर्म भरने को कहना अनुचित बहिष्कार कर सकता है। टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा की ओर से वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने नागरिकता की धारणा और कम समयसीमा पर सवाल उठाए।

सामाजिक कार्यकर्ता योगेंद्र यादव ने SIR को “इतिहास का सबसे बड़ा मताधिकार हनन” बताया, दावा किया कि बहिष्करण एक करोड़ से अधिक हो सकता है और इसमें महिलाओं पर अधिक असर पड़ेगा। एनजीओ एडीआर की ओर से अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने ऑनलाइन ड्राफ्ट रोल हटाने और 10-12% आवेदनों की बिना कारण अस्वीकृति पर आपत्ति जताई।

चुनाव आयोग ने जनसांख्यिकीय बदलाव, शहरी पलायन और पुरानी सूची को सुधारने की जरूरत का हवाला देते हुए निर्णय का बचाव किया और कहा कि उसे संविधान के अनुच्छेद 324 और जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 की धारा 21(3) के तहत यह अधिकार है। वरिष्ठ वकील राकेश द्विवेदी ने कहा कि लगभग 6.5 करोड़ लोगों को दस्तावेज जमा करने की जरूरत नहीं है, और अंतिम सूची 30 सितंबर से पहले त्रुटियां सुधारी जा सकती हैं।

याचिकाओं में केवल 11 दस्तावेजों को नागरिकता प्रमाण के रूप में मानने पर भी आपत्ति है, जिसे विधिक आधारहीन बताया गया। बिहार चुनाव से पहले यह मामला राजनीतिक विवाद का केंद्र बन गया है। विपक्ष के विरोध को सरकार ने खारिज करते हुए कहा कि घुसपैठियों को मतदान का अधिकार नहीं हो सकता। अदालत बुधवार को सुनवाई जारी रखेगी।

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