पीएमएलए के बावजूद गैर-अनुपालन क्रिप्टो प्लेटफॉर्म्स सक्रिय, नियामकीय व्यवस्था और राष्ट्रीय सुरक्षा पर मंडरा रहा खतरा

पीएमएलए के तहत सख्त प्रवर्तन के बावजूद विदेशी क्रिप्टो प्लेटफॉर्म्स की अनियंत्रित गतिविधियां बनीं FATF मूल्यांकन से पहले बड़ी चुनौती
26 जून 2025, नई दिल्ली
भारत सरकार द्वारा मार्च 2023 में वर्चुअल डिजिटल एसेट (VDA) सेवा प्रदाताओं को मनी लॉन्ड्रिंग निरोधक अधिनियम (PMLA) के तहत रिपोर्टिंग इकाई घोषित किए जाने के दो साल बाद भी, गैर-अनुपालन विदेशी क्रिप्टो प्लेटफॉर्म्स का संचालन भारत के लिए गंभीर नियामकीय और राष्ट्रीय सुरक्षा संकट बनता जा रहा है।
यह ऐतिहासिक फैसला भारत को FATF (Financial Action Task Force) की सिफारिशों के अनुरूप लाने के लिए था, जिससे देश की डिजिटल संपत्ति प्रणाली को मनी लॉन्ड्रिंग और आतंकवाद वित्तपोषण विरोधी ढांचे में शामिल किया जा सके। लेकिन दो वर्षों बाद भी यह स्पष्ट है कि नियामकीय तंत्र में कई खामियाँ अब भी मौजूद हैं।
भारतीय प्लेटफॉर्म्स ने उठाया अनुपालन का बोझ
सरकार के निर्देशों के बाद भारत के प्रमुख क्रिप्टो एक्सचेंजों ने तत्परता दिखाते हुए KYC प्रक्रिया को मजबूत किया, FIU-IND के साथ रिपोर्टिंग और डेटा साझा करना शुरू किया, और कर्मचारियों को संदेहास्पद लेन-देन रिपोर्टिंग (STR) के लिए प्रशिक्षित किया। इसके लिए उन्हें न केवल वित्तीय लागत, बल्कि प्रशासनिक चुनौतियों का भी सामना करना पड़ा, फिर भी उन्होंने कानून का सम्मान करते हुए प्रक्रिया को अपनाया।
गैर-अनुपालन प्लेटफॉर्म्स का बढ़ता दबदबा
इसके विपरीत, कई विदेशी क्रिप्टो प्लेटफॉर्म्स अब भी भारत में कानूनी दायरे से बाहर रहकर काम कर रहे हैं। ये प्लेटफॉर्म टेलीग्राम जैसे ऐप्स और सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर्स की मदद से देश में ग्राहकों को निशाना बना रहे हैं—वह भी स्थानीय भाषाओं में प्रचार कर। ये न तो KYC करते हैं, न रिपोर्टिंग, और न ही किसी वैधानिक उत्तरदायित्व का पालन करते हैं।
इससे एकतरफा प्रतिस्पर्धा उत्पन्न हुई है: नियमों का पालन करने वाले प्लेटफॉर्म लागत, नियंत्रण और छवि प्रबंधन में फंसते हैं, जबकि गैर-अनुपालन प्लेटफॉर्म्स उपयोगकर्ताओं को सुविधाजनक, तेज और गुमनाम सेवाओं का लालच देकर खींच रहे हैं। इसका सीधा असर यह हुआ कि कई उपयोगकर्ता वैध भारतीय एक्सचेंजों को छोड़कर अनौपचारिक रास्तों की ओर मुड़ गए हैं।
राष्ट्रहित में गंभीर जोखिम
यह स्थिति केवल व्यापार तक सीमित नहीं है, बल्कि यह पूंजी पलायन, कर चोरी, और यहां तक कि आतंकवाद वित्तपोषण जैसे बड़े खतरों को जन्म देती है। साथ ही, इन प्लेटफॉर्म्स का उपयोग करने वाले उपभोक्ता फिशिंग, धोखाधड़ी और साइबर हमलों के प्रति असुरक्षित रहते हैं, क्योंकि उनके पास कोई कानूनी संरक्षण या शिकायत समाधान प्रणाली नहीं होती।
प्रवर्तन के प्रयास और सीमाएँ
हालांकि सरकार ने कुछ प्लेटफॉर्म्स को शो-कॉज़ नोटिस भेजे हैं, लेकिन वे URL ब्लॉकिंग या ऐप स्टोर से हटाए जाने जैसे कदमों को तकनीकी रूप से आसानी से दरकिनार कर देते हैं। इससे स्पष्ट होता है कि परंपरागत प्रवर्तन उपाय अब अपर्याप्त हैं।
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आवश्यक समाधान और आगे की राह
- जियो-ब्लॉकिंग और पेमेंट गेटवे पर निगरानी को तुरंत लागू करना चाहिए
- FATF का ट्रैवल रूल लागू कर सीमा-पार ट्रांजैक्शन ट्रेसबिलिटी सुनिश्चित की जानी चाहिए
- अंतर-मंत्रालयी टास्क फोर्स बनाकर समन्वित प्रवर्तन किया जाए
- नागरिकों के लिए सार्वजनिक चेतावनी अभियान चलाया जाए
भारत का क्रिप्टो भविष्य केवल अच्छी नीतियों पर नहीं, बल्कि उनकी प्रभावी अनुपालना पर निर्भर करता है। देश एक दोहरी अर्थव्यवस्था का जोखिम नहीं उठा सकता—जहां एक ओर नियम पालन करने वालों को दंड मिले और दूसरी ओर उल्लंघन करने वालों को लाभ।
अब समय आ गया है कि गैर-अनुपालन क्रिप्टो प्लेटफॉर्म्स के खिलाफ निर्णायक कदम उठाए जाएं—वरना देश की वित्तीय स्थिरता और अंतरराष्ट्रीय साख दोनों को खतरा है।
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