चंबल में अवैध रेत खनन का भंडाफोड़ करने वाले पत्रकारों को सुप्रीम कोर्ट से अंतरिम सुरक्षा

“यह केवल हमारा संघर्ष नहीं, हर उस पत्रकार की आवाज़ है जो सच के लिए जोखिम उठाता है” — पत्रकारों ने सुप्रीम कोर्ट की राहत को बताया प्रेस की स्वतंत्रता की जीत
9 जून 2025, नई दिल्ली
भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने चंबल क्षेत्र में अवैध रेत खनन का खुलासा करने वाले दो पत्रकारों — शशिकांत जाटव और अमरकांत सिंह चौहान — को गिरफ्तारी से अंतरिम राहत प्रदान की है। यह फैसला उन पर हुए कथित हमलों और धमकियों के बाद आया है, जिनका सामना उन्होंने अपनी खोजी पत्रकारिता के चलते किया।
भिंड जिले में कार्यरत इन पत्रकारों ने अपनी याचिका में आरोप लगाया है कि उन्हें स्थानीय पुलिस द्वारा शारीरिक प्रताड़ना और धमकियों का सामना करना पड़ा, जो सीधे तौर पर उनकी रिपोर्टिंग से जुड़ा था। इन रिपोर्टों में उन्होंने चंबल नदी क्षेत्र में हो रहे अनियंत्रित और अवैध खनन गतिविधियों का खुलासा किया था, जिससे पर्यावरणीय संतुलन भी खतरे में पड़ा।
अमरकांत सिंह चौहान, जो ‘स्वराज एक्सप्रेस’ के ब्यूरो प्रमुख हैं, ने बताया कि 1 मई को उन्हें एसपी कार्यालय बुलाकर उनके साथ गंभीर मारपीट की गई — जिसमें कपड़े उतरवाकर पीटे जाने का भी आरोप है। चौहान के अनुसार यह घटना अन्य पत्रकारों की मौजूदगी में हुई। 4 मई को चौहान और स्वतंत्र पत्रकार शशिकांत जाटव को एक बिचौलिए के माध्यम से धोखे से एसपी के बंगले पर ले जाया गया, जहां उन पर शिकायत वापस लेने का दबाव डाला गया।
सुरक्षा को लेकर आशंकित दोनों पत्रकार 5 मई को दिल्ली पहुंचे और उन्होंने प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया और राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के समक्ष औपचारिक शिकायतें दर्ज कराईं। शुरुआत में उन्होंने दिल्ली हाईकोर्ट का रुख किया, जहां से उन्हें दो माह की अंतरिम राहत मिली। हालांकि, क्षेत्रीय अधिकार-क्षेत्र के कारण कोर्ट ने उन्हें मध्य प्रदेश हाईकोर्ट जाने की सलाह दी। मामला दो राज्यों और गंभीर संवेदनशीलता से जुड़ा हुआ होने के चलते उन्होंने सीधे सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया।
सुप्रीम कोर्ट ने मामले पर संज्ञान लेते हुए मध्य प्रदेश और दिल्ली सरकार को नोटिस जारी किए और दोनों पत्रकारों की गिरफ्तारी पर अंतरिम रोक लगाई। यह कदम पत्रकारों को मिली धमकियों और उत्पीड़न के खिलाफ कानूनी सुरक्षा की दिशा में अहम माना जा रहा है।
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मध्य प्रदेश सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दिए जवाब में पत्रकारों के आरोपों को खारिज करते हुए कहा है कि उनके खिलाफ जबरन वसूली जैसे गंभीर आरोप हैं। पत्रकारों का कहना है कि ये आरोप पूरी तरह झूठे और प्रतिशोध की भावना से प्रेरित हैं।
एक संयुक्त बयान में पत्रकारों ने कहा:
“यह सिर्फ हमारा मामला नहीं है, बल्कि हर उस पत्रकार के अधिकार का सवाल है जो बिना डर के जनहित में सच सामने लाना चाहता है। हम सुप्रीम कोर्ट की इस सुरक्षा का स्वागत करते हैं और न्यायपालिका पर पूरा भरोसा रखते हैं।”
वरिष्ठ पत्रकार मनोज शर्मा ने भी सुप्रीम कोर्ट के फैसले का समर्थन करते हुए कहा:
“यह मामला दर्शाता है कि उन क्षेत्रों में खोजी पत्रकारिता के लिए कितनी सीमित जगह बची है, जहां अवैध गतिविधियां बेरोकटोक चल रही हैं। सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय प्रेस स्वतंत्रता की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।”
फिलहाल यह मामला जांच के अधीन है और दोनों पत्रकारों ने स्पष्ट किया है कि वे कानूनी प्रक्रिया में पूरी तरह सहयोग करेंगे।
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