सोशल मीडिया पर बच्चों का बचपन को स्क्रीन के जाल से बचाने की चुनौती
11 दिसंबर 2024 , नई दिल्ली
आजकल के महानगरों में टीनेजर बच्चों का मोबाइल और लैपटॉप के साथ अपने कमरे में बिजी रहना माता-पिता के लिए चिंता का विषय बनता जा रहा है। ऐसे में ऑस्ट्रेलिया द्वारा 16 साल से कम उम्र के बच्चों के लिए सोशल मीडिया बैन की खबर ने भारतीय अभिभावकों का ध्यान खींचा है। यह वैश्विक स्तर पर बच्चों के स्क्रीन टाइम को लेकर बढ़ती जागरूकता का संकेत है। आइए इस विषय को विस्तार से समझें।
सोशल मीडिया और बच्चों के व्यवहार में बदलाव
केस स्टडी 1: बिना वजह खुद को नुकसान पहुंचाने वाली लड़की
एक 15 वर्षीय लड़की, जो घर में पेंटिंग बनाती और अंग्रेजी गाने सुनती थी, ने बिना किसी कारण खुद को नुकसान पहुंचाने की कोशिश की। जांच के बाद पता चला कि वह सोशल मीडिया के माध्यम से हिंसक गानों और चित्रों से प्रभावित थी।
केस स्टडी 2: टीचर की फेक प्रोफाइल बनाने वाला छात्र
एक 16 साल के छात्र ने अपनी टीचर की फेक प्रोफाइल बनाकर आपत्तिजनक तस्वीरें सोशल मीडिया पर पोस्ट कर दीं। पेरेंट्स को इस बारे में बिल्कुल भी जानकारी नहीं थी कि उनका बच्चा लैपटॉप पर पढ़ाई की जगह ऐसा कर रहा है।
सोशल मीडिया के दुष्प्रभाव
- शारीरिक समस्याएं
- नींद की गड़बड़ी: स्क्रीन टाइम से स्लीप साइकल डिस्टर्ब होता है।
- पोस्चर पेन: लंबे समय तक गलत तरीके से बैठने से रीढ़ की हड्डी पर असर पड़ता है।
- आंखों की समस्या: कम उम्र में चश्मा लगने की संभावना बढ़ जाती है।
- फिजिकल एक्टिविटी में कमी: बच्चे खेल-कूद और अन्य गतिविधियों से दूर हो जाते हैं।
2.मानसिक समस्याएं
- डिप्रेशन और सुसाइडल थॉट्स: सोशल मीडिया पर प्रेशर के चलते बच्चे अवसाद का शिकार हो जाते हैं।
- ध्यान की कमी: लंबे समय तक मोबाइल उपयोग से एकाग्रता कमजोर होती है।
- आक्रामकता: लाइक्स और कमेंट्स का दबाव बच्चों को चिड़चिड़ा और गुस्सैल बनाता है।
3.सामाजिक प्रभाव
- स्वयं को नुकसान: सोशल मीडिया के कारण कई बच्चे खुद को नुकसान पहुंचाने की ओर अग्रसर हो रहे हैं।
- सामाजिक अलगाव: बच्चे परिवार और दोस्तों से दूरी बना लेते हैं।
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ऑस्ट्रेलिया में बच्चों के लिए सोशल मीडिया बैन
ऑस्ट्रेलिया ने 16 साल से कम उम्र के बच्चों के सोशल मीडिया उपयोग पर रोक लगाई है। इसका उद्देश्य बच्चों को साइबर बुलिंग, हानिकारक कंटेंट और एडिक्शन से बचाना है।
भारत में बच्चों का सोशल मीडिया उपयोग
- रिपोर्ट के अनुसार:
- 87.82% भारतीय बच्चे सोशल मीडिया का उपयोग करते हैं।
- इनमें से अधिकांश व्हाट्सएप, यूट्यूब और फेसबुक पर सक्रिय हैं।
- भारत में कानून:
भारत में बच्चों के सोशल मीडिया उपयोग को नियंत्रित करने के लिए कोई ठोस कानून नहीं है। हालांकि, डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण अधिनियम (DPDPA) 2023 में बच्चों की सुरक्षा के लिए कुछ दिशानिर्देश हैं।
समस्या का समाधान: बैन या जागरूकता?
विशेषज्ञों की राय:
- मुकेश चौधरी (साइबर एक्सपर्ट):
बच्चों के लिए बैन लगाना संभव नहीं है। अभिभावकों को बच्चों पर नजर रखनी चाहिए। - डॉ. अनुराधा जोशी (शिक्षाविद):
बैन किसी समस्या का समाधान नहीं है। बच्चों को सशक्त बनाना और साइबर सुरक्षा की शिक्षा देना बेहतर उपाय है।
अभिभावकों की जिम्मेदारी:
- बच्चों के स्क्रीन टाइम पर निगरानी रखें।
- डिवाइस को खुले स्थान पर इस्तेमाल करने दें।
- बच्चों के साथ समय बिताएं और उन्हें सामाजिक गतिविधियों में शामिल करें।
- उन्हें साइबर सुरक्षा और सोशल मीडिया के खतरों के बारे में जागरूक करें।
निष्कर्ष: बचपन बचाने की जरूरत
सोशल मीडिया बच्चों का बचपन जल्दी खत्म कर रहा है। यह अभिभावकों और समाज की जिम्मेदारी है कि बच्चों को सही दिशा में मार्गदर्शन दें। इंटरनेट और सोशल मीडिया को जीवन का हिस्सा समझें, लेकिन जीवन नहीं।
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