पंचशूल: लंका की सुरक्षा का रहस्यमय कवच
08 मार्च 2024, देवघर
महाशिवरात्रि के आगमन से पहले देवघर में स्थित बाबा बैद्यनाथ मंदिर में एक विशेष कार्यक्रम का आयोजन किया जाता है। इस कार्यक्रम के दौरान, मंदिर के शिखर पर स्थित शिव और पार्वती मंदिर के पंचशूल को उतारकर उसकी साफ़-सफ़ाई की जाती है। इसके बाद, दूसरे दिन विधिवत पंचशूल की पूजा-अर्चना की जाती है और फिर उसे मंदिर के शिखर पर स्थापित किया जाता है। इस विशेष परंपरा के अनुसार, मंदिर के शिखर पर स्थित पंचशूल को नीचे उतारा जाता है और फिर उसकी पूजा की जाती है। बुधवार को जब देवघर के बाबा मंदिर से पंचशूल को उतारा गया, तो उसे स्पर्श करने के लिए मंदिर परिसर में श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ पड़ी। पंचशूल की साफ सफाई के बाद गुरुवार को विधिवत पूजा के बाद दोनों मंदिरों पर चढ़ाई गई। मंदिर से पंचशूल को उतारने के समय, मंदिर में गठबंधन पूजा बंद रही।
बाबा बैद्यनाथ मंदिर देवघर के शिखर पर स्थित पंचशूल की महत्वपूर्ण विशेषता है। मंदिर की इस अनोखी विशेषता में यह भी शामिल है कि इसके शिखर पर त्रिशूल नहीं, बल्कि पंचशूल स्थापित हैं। इसे मंदिर का सुरक्षा कवच माना जाता है। देश में सिर्फ देवघर मंदिर के शिखर पर ही पंचशूल होने का दावा किया जाता है। वैद्यनाथ धाम का यह पंचशूल रहस्यों से भरा है।
मान्यता है कि बाबा के मंदिर की शिखर पर स्थित पंचशूल मानव को अजेय शक्ति प्रदान करता है। धर्माचार्यों के अलग-अलग विचार हो सकते हैं, लेकिन सभी सहमत हैं कि पंचशूल का इतिहास और महत्व त्रेत्रा युग के लंका के राजा रावण से जुड़ा है। रावण ने मंदिर की सुरक्षा के लिए शिखर पर पंचशूल का सुरक्षा कवच लगाया था। इस वजह से आज तक किसी भी प्राकृतिक आपदा का मंदिर पर असर नहीं होता। लंका की सुरक्षा के लिए भी रावण ने चारों द्वार पर पंचशूल का सुरक्षा कवच स्थापित किया था।
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