प्रमुख वित्तीय संस्थानों ने क्रिप्टो जोखिमों को लेकर दी चेतावनी, त्वरित नियामक कार्रवाई की मांग
नई दिल्ली
वर्चुअल डिजिटल एसेट्स (VDAs) ने वित्तीय दुनिया में एक बड़ा बदलाव लाया है। यह न केवल तेज़ और आसान लेन-देन की सुविधा देता है, बल्कि इसके विकेंद्रीकरण और प्रोग्रामेबिलिटी ने वैश्विक वित्तीय परिदृश्य को नया रूप दिया है। लेकिन जितना यह आकर्षक लगता है, उतना ही जोखिम भरा भी हो सकता है। प्रमुख वित्तीय संस्थान जैसे IMF, FSB और IOSCO बार-बार चेतावनी दे चुके हैं कि यदि इसे सही तरीके से नियंत्रित नहीं किया गया, तो यह किसी भी समय वैश्विक अर्थव्यवस्था को हिला सकता है।
क्रिप्टो बाजार की अस्थिरता निवेशकों को जोखिम में डालती है। कभी यह उन्हें ऊंचे लाभ का लालच देती है, तो कभी पल भर में उनकी पूंजी समाप्त कर देती है। लेकिन खतरा सिर्फ व्यक्तिगत निवेशकों तक सीमित नहीं है। जैसे-जैसे क्रिप्टो और पारंपरिक वित्तीय संस्थानों का रिश्ता गहराता जा रहा है, वैसे-वैसे एक बड़ा क्रिप्टो संकट पूरी वित्तीय प्रणाली को अस्थिर कर सकता है। यदि क्रिप्टो बाजार में कोई बड़ी गिरावट आती है, तो यह बैंकों और वित्तीय संस्थाओं को भी झकझोर सकता है, जिससे पूरी अर्थव्यवस्था प्रभावित हो सकती है।
सुरक्षा खामियां भी एक बड़ी चुनौती बन चुकी हैं। साइबर हमले, तकनीकी गलतियाँ, और स्मार्ट कॉन्ट्रैक्ट्स में बग जैसी समस्याएं इस क्षेत्र को असुरक्षित बना रही हैं। इसके अलावा, डॉलर-समर्थित स्थिर मुद्राओं के बढ़ते प्रभाव से भारतीय मुद्रा की स्थिरता भी खतरे में पड़ सकती है। यदि ये मुद्राएं अन्य देशों के वित्तीय ढांचे में प्रवेश करती हैं, तो भारतीय रिज़र्व बैंक के मौद्रिक नियंत्रण को कमजोर कर सकती हैं।
यह खतरा सिर्फ तकनीकी या वित्तीय नहीं है, बल्कि इससे जुड़े धोखाधड़ी और घोटाले भी गंभीर चिंता का विषय हैं। BitConnect, GainBitcoin, Dekado और CoinEGG जैसे घोटालों में लाखों निवेशक अपनी पूंजी गंवा चुके हैं। वहीं, सोशल मीडिया और अन्य प्लेटफार्मों पर फर्जी स्कीम्स और फ़िशिंग हमलों ने आम निवेशकों को भी प्रभावित किया है।
यह समस्या केवल भारत तक सीमित नहीं है, बल्कि पूरी दुनिया में क्रिप्टो पर कड़ी नजर रखी जा रही है। IMF और FSB ने 2023 में एक साझा रोडमैप जारी किया था, ताकि उभरते देशों को इस संकट से निपटने के लिए तैयार किया जा सके। IOSCO ने भी क्रिप्टो और डिजिटल एसेट्स के लिए नए नियम तैयार किए हैं, जिनकी समीक्षा अगले वर्ष की जाएगी। बासेल कमेटी ऑन बैंकिंग सुपरविज़न (BCBS) ने बैंकों के क्रिप्टो एक्सपोजर के लिए नए मानक लागू किए हैं, जो 2026 से प्रभावी होंगे।
वहीं भारत सरकार हाल के वैश्विक बदलावों को ध्यान में रखते हुए अपनी क्रिप्टोकरेंसी नीति की फिर से समीक्षा कर रही है। हाल ही में एक कार्यक्रम के दौरान आर्थिक मामलों के विभाग (DEA) के सचिव अजय सेठ ने बताया कि सरकार ने भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) की भागीदारी के साथ एक चर्चा पत्र तैयार किया था, लेकिन कई देशों द्वारा क्रिप्टो संपत्तियों, विशेष रूप से स्थिर मुद्राओं (stablecoins) और सीमा पार लेन-देन में उनके उपयोग पर अपने रुख में बदलाव के कारण इसे पुनर्मूल्यांकन किया जा रहा है।
2023 में भारत की G20 अध्यक्षता के दौरान क्रिप्टो पर वैश्विक नियामक स्थिति अपेक्षाकृत स्थिर थी। लेकिन हाल ही में स्थिर मुद्राओं के संभावित जोखिमों को लेकर बढ़ती चिंताओं और कुछ देशों द्वारा क्रिप्टो को अंतरराष्ट्रीय भुगतान के लिए अपनाने के प्रयासों ने इस बहस को और जटिल बना दिया।
भारत के लिए यह समय सतर्क रहने और निर्णायक कदम उठाने का है। सरकार को स्पष्ट और सख्त नियम बनाने होंगे, ताकि क्रिप्टो प्लेटफॉर्म्स को साइबर सुरक्षा के कड़े उपाय लागू करने, नियमित ऑडिट कराने और आपातकालीन स्थितियों में सही फैसले लेने के लिए बाध्य किया जा सके। साथ ही, निवेशकों की सुरक्षा को प्राथमिकता देना आवश्यक है, ताकि वे धोखाधड़ी से बच सकें।
यदि भारत इस समय सही कदम उठाता है, तो न केवल हमारी वित्तीय प्रणाली सुरक्षित होगी, बल्कि हम क्रिप्टो के विकास में वैश्विक नेता बन सकते हैं। दुनिया भर के नियामक पहले ही दिशा दिखा चुके हैं—अब भारत को इसे अपनाने का समय आ गया है।
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